जो लोग छोटे शहरों और कस्बों में रहते
हैं, वो पत्रकारों की इस स्थिति से बखूबी वाकिफ होते
हैं। ऐसी जगहों का ये आम अनुभव होता है कि पत्रकार घूसखोर होते हैं, और पैसे लेकर खबरें छिपाते हैं। ठीक उसी तरह जैसे कि जी न्यूज के संपादक
छिपे कैमरों में बड़े स्तर पर जिंदल ग्रुप से कोयला घोटाले से जुड़ी खबरे नहीं
छापने के लिए सौदेबाजी करते देखे गए। वह कह सकते हैं कि वे जिंदल ग्रुप से 100 करोड़ का विज्ञापन मांग रहे थे। ठीक ऐसे ही निचले स्तर पर भी पत्रकार
विज्ञापन लेने के लिए ढेर सारी ऐसी खबरें छिपाते हैं। कई बार यह सौदेबाजी किसी खास
खबर को नहीं छापने की बजाय खबर बन सकने वाले व्यक्ति से इस आधार पर भी होती है कि
पत्रकार उसकी सभी काली करतूतों से मुंह मोड़े रहेगा और कभी उसकी कोई खबर नहीं आने
देगा। मीडिया के निरंतर बढ़ते बाजार ने इन करतूतों की संख्या में ना केवल बढ़ोतरी
की है बल्कि इन के खुलकर सामने आने की घटनाएं भी बढ़ी हैं। सर्वे के अनुभवः
भ्रष्टाचार छुपाने का खेल मीडिया स्टडीज ग्रुप ने अखबारों के स्थानीय स्तर के
संस्करणों के विज्ञापनों का एक सर्वे किया यह देखने की कोशिश की कि स्थानीय स्तर
पर अखबारों को कौन से लोग ज्यादा विज्ञापन देते हैं। यह आम अनुभव है कि त्यौहारों
और राष्ट्रीय पर्वों पर अखबार विज्ञापनों से अटे रहते हैं। किसी त्यौहार या
राष्ट्रीय पर्व के दिन का अखबार उठाकर यह साफ-साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि स्थानीय
अखबारों को कैसे-कैसे लोग विज्ञापन देते हैं और उनके विज्ञापन देने के क्या लाभ हो
सकते हैं। ‘‘मीडिया की आमदनी का एक बड़ा हिस्सा
विज्ञापनों से आता है, ऐसे में कई बार अखबार
विज्ञापनदाताओं को उपकृत करने के लिए उनका हुकुम भी बजाते हैं, खासतौर पर बड़े और बहुराष्ट्रीय विज्ञापनदाओं के। ऐसी खबरें और लेख जो
विज्ञापनदाताओं के लिए उपयुक्त होती हैं उन्हें प्रमुखता दी जाती है और जो उन्हें
नुकसान पहुंचा सकते हैं उन्हें हटा दिया जाता है।’’ प्रेस
काउंसिल ने यह बातें बड़े और बहुराष्ट्रीय विज्ञापनदाताओं के संबंध में कही थी। तब
से लेकर अब तक प्रिंट मीडिया का प्रसार और सघन हुआ है। केवल अखबारों की संख्या ही
नहीं बढ़ी है, बल्कि संस्करणों की संख्या में भी तेजी
से बढ़ोतरी हुई है। आज अखबारों के जिले स्तर से लेकर ग्रामीण स्तर पर अखबारों के
संस्करण छप रहे हैं। एक ही जिले में एक अखबार के कई संस्करण पहुंच रहे हैं। मसलन
राजस्थान पत्रिका का कोटा से प्रकाशित होने वाला अखबार शहर के लिए अलग छपता है और
ग्रामीण क्षेत्र के लिए अलग छपता है या इलाहाबाद से दैनिक जागरण का संस्करण शहर के
अलावा आस-पास के क्षेत्रों के लिए और कई संस्करण छापता है, जैसे कि ‘गंगा पार’ और ‘यमुना पार’। अखबारों के संस्करणों में इस तरह से
इजाफे का अपना एक आर्थिक और सामाजिक आधार है जो इन संस्करणों को जीवित रखे हुए है।
बड़े स्तर पर अखबारों की आर्थिक जरूरत विज्ञापनों से पूरी होती है। लेकिन क्या
प्रेस काउंसिल के रिपोर्ट की उक्त बातें छोटे और निचले स्तर पर भी लागू होती हैं? निचले या जिला स्तर पर अखबारों की जरूरत को कौन पूरा करता है? बड़े और कॉरपोरेट विज्ञापनदाता स्थानीय स्तर को ध्यान में रखते हुए
विज्ञापन नहीं देते हैं। जिले स्तर पर अखबारों को स्थानीय लोगों में से विज्ञापन
जुटाने होते हैं और अपनी आर्थिक जरूरतों को पूरा करते हुए कंपनी को फायदा भी देना
होता है। ऐसे में स्थानीय स्तर पर के विज्ञापनदाताओं और अखबारों के बीच अंतर्संबंध
के बारे में यह बात भी लागू होती है कि ‘अखबार उनकी
इच्छा के अनुसार खबरें छापते या छुपाते हैं।’ मीडिया
स्टडीज ग्रुप एक सर्वे में यह देखने को मिला की अखबारों के स्थानीय संस्करणों को
विज्ञापन देने वाले लोगों में ज्यादातर ग्राम प्रधान, राशन
डीलर, सरकारी अधिकारी और स्थानीय व्यापारी जिसमें
बिल्डर और प्रोपर्टी डीलर भी शामिल हैं प्रमुखतौर पर शामिल होते हैं। सर्वे में
बहु संस्करणों वाले प्रमुख दैनिक अखबारों को लिया गया है। ये अखबार भारत के
अलग-अलग हिस्सों से अपना कई संस्करण निकालते हैं। जैसे दैनिक भास्कर 13 राज्यों से घोषित तौर पर 65 संस्करण
निकाला है। सर्वे के लिए उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा,हिमाचल
प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, झारखंड, छत्तीसगढ़, असम
और गुजरात से छपने वाले हिंदी भाषा के ‘दैनिक भास्कर’,
‘दैनिक जागरण’, ‘अमर उजाला’, ‘हिंदुस्तान’, ‘जन संदेश टाइम्स’, ‘राजस्थान पत्रिका’, ‘पत्रिका’ ‘दैनिक कश्मीर टाइम्स’ और ‘पंजाब केसरी’, पंजाबी भाषा का ‘अजीत’, ‘पंजाबी ट्रिब्यून’, ‘पंजाबी
जागरण’, गुजराती के अखबार ‘दिव्य
भास्कर’ को शामिल किया गया। इस सर्वे में जो खास बात
देखने को मिली की स्थानीय स्तर के वो सभी संस्थाएं या लोग जो भ्रष्टाचार में लिप्त
रहते/रहती हैं या हो सकती हैं वो अखबारों की प्रमुख विज्ञापनदाता हैं। मसलन सर्वे
में यह देखा गया कि एक व्यक्ति के तौर पर सबसे ज्यादा ग्राम प्रधानों ने विज्ञापन
जारी किए। इसी तरह सरकारी राशन डीलर, सरकारी अधिकारी
जिसमें की थाना प्रभारी से लेकर जिला कलक्टर, तहसीलदार, वन विभाग, शिक्षा विभाग, आपूर्ति विभाग के अधिकारी-कर्मचारी भी विज्ञापनदाताओं में प्रमुख हैं।
मजेदार बात ये कि इन अधिकारियों ने ये विज्ञापन सरकारी तौर पर नहीं दिया बल्कि
व्यक्तिगत तौर पर दिया। इनके विज्ञापन देने के क्या लाभ हो सकते हैं।
डिजिटल गली
Friday 15 April 2016
मजदूरी तो मज़बूरी है .... साहेब !
यह माना
जाता है कि भारत में 14 साल के बच्चों की
आबादी पूरी अमेरिकी आबादी से भी ज़्यादा है. भारत में कुल श्रम शक्ति का लगभग 3.6 फीसदी हिस्सा 14 साल से कम उम्र के
बच्चों का है. हमारे देश में हर दस बच्चों में से 9 काम करते हैं. ये बच्चे लगभग 85 फीसदी पारंपरिक कृषि
गतिविधियों में कार्यरत हैं, जबकि 9 फीसदी से कम उत्पादन, सेवा और मरम्मती
कार्यों में लगे हैं. स़िर्फ 0.8 फीसदी कारखानों में
काम करते हैं. आमतौर पर बाल मज़दूरी अविकसित देशों में व्याप्त विविध समस्याओं का
नतीजा है. भारत सरकार दूसरे राज्यों के सहयोग से बाल मज़दूरी ख़त्म करने की दिशा में
तेज़ी से प्रयासरत है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार ने राष्ट्रीय बाल श्रम
परियोजना (एनसीएलपी) जैसे महत्वपूर्ण क़दम उठाए हैं. आज यह कहने की ज़रूरत नहीं है
कि इस परियोजना ने इस मामले में का़फी अहम कार्य किए हैं. इस परियोजना के तहत
हज़ारों बच्चों को सुरक्षित बचाया गया है. साथ ही इस परियोजना के तहत चलाए जा रहे
विशेष स्कूलों में उनका पुनर्वास भी किया गया है. इन स्कूलों के पाठ्यक्रम भी
विशिष्ट होते हैं, ताकि आगे चलकर इन बच्चों को मुख्यधारा के विद्यालयों में प्रवेश लेने
में किसी तरह की परेशानी न हो. ये बच्चे इन विशेष विद्यालयों में न स़िर्फ बुनियादी
शिक्षा हासिल करते हैं, बल्कि उनकी रुचि के मुताबिक़ व्यवसायिक प्रशिक्षण भी दिया जाता है.
राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना के तहत इन बच्चों के लिए नियमित रूप से खानपान और
चिकित्सकीय सहायता की व्यवस्था है. साथ ही इन्हें एक सौ रुपये मासिक वजी़फा दिया
जाता है. ग़ैर सरकारी संगठनों या स्थानीय निकायों द्वारा चलाए जा रहे ऐसे स्कूल इस
परियोजना के अंतर्गत अपना काम भलीभांति कर रहे हैं. हज़ारों बच्चे मुख्य धारा में
शामिल हो चुके हैं, लेकिन अभी भी कई बच्चे बाल मज़दूर की ज़िंदगी जीने को मजबूर हैं. समाज की
बेहतरी के लिए इस बीमारी को जड़ से उखाड़ना बहुत ज़रूरी है. एनसीएलपी जैसी परियोजनाओं
के सामने कई तरह की समस्याएं हैं. यदि हम सभी इन समस्यायों का मूल समाधान चाहते
हैं तो हमें इन पर गहनता से विचार करने की ज़रूरत है. इस संदर्भ में सबसे पहली
ज़रूरत है 14 साल से कम उम्र के बाल
मज़दूरों की पहचान करना. आख़िर वे कौन से मापदंड हैं, जिनसे हम 14 साल तक के बाल मज़दूरों की पहचान करते हैं और जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर
भी मान्य हों? क्या हमारा तात्पर्य यह होता है कि जब बच्चा 14 साल का हो जाए तो उसकी देखभाल की जिम्मेदारी राज्य की हो जाती है? हम जानते हैं कि ग़रीबी
में अपना गुज़र-बसर कर रहे बच्चों कोपरवरिश की ज़रूरत है. कोई बच्चा जब 14 साल का हो जाता है और ऐसे में सरकार अपना सहयोग बंद कर दे तो मुमकिन है
कि वह एक बार फिर बाल मज़दूरी के दलदल में फंस जाए. यदि सरकार ऐसा करती है तो यह
समस्या बनी रह सकती है और बच्चे इस दलदल भरी ज़िंदगी से कभी बाहर ही नहीं निकल
पाएंगे. कुछ लोगों का मानना है और उन्होंने यह प्रस्ताव भी रखा है कि बाल मज़दूरों
की पहचान की न्यूनतम आयु बढ़ाकर 18 साल कर देनी चाहिए.
साथ ही सभी सरकारी सहायताओं मसलन मासिक वजी़फा, चिकित्सा सुविधा और
खानपान का सहयोग तब तक जारी रखना चाहिए, जब तक कि बच्चा 18 साल का न हो जाए.
वैश्विक स्तर पर NWICO ( न्यूको ) की प्रासंगिकता
NWICO क्या है? NWICO जिसका पूरा नाम NEW
WORLD INFORMATION COMMUNICATION ORDER है हिंदी भाषा में हम
जिसे विश्व सूचना एवं संचार व्यवस्था के नाम से जाना जाता हैं ! संचार व सूचना
विभिन्न देशों के लोगो के समावेशी विकास में सहायक है! इसके द्वारा विभिन्न देशों
की समस्याओं को समझकर परस्पर भाईचारे की भावना का विकास किया जा सकता है!
अंतर्राष्ट्रीय सुचना व्यवस्था और विकासशील देश जिसमे तीसरे विश्व के देशों ने
मांग की कि इन अंतर्राष्ट्रीय सूचना व्यवस्था में जो असमानता है व त्रुटिया हैं
उनको ठीक करने के लिए नई व्यवस्था कायम की ! इसी मांग को लेकर विश्व की नई सुचना
एवं संचार व्यवस्था की स्थापना हुई ! न्यूकों: मीडिया के बदलते हालत Nwico के आधारिय अंतर्राष्ट्रीय संचार संगठन NWICO की
बात जब भी की जाती है तो यहाँ दो अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की चर्चा आवश्यक ही नही
बल्कि अपरिहार्य हो जाती है! (1.) यूनेस्को– यूनेस्को जिसका पूरा नाम यूनाइटेड नेशन एजुकेशनल साइंटिफिक एंड कल्चरल
आर्गेनाइजेशन है! यूनेस्को की स्थापना 1 NOV -16 NOV 1945 को इंग्लैंड में आयोजित युद्ध की विभीषिका से संबंधित सम्मलेन में आरंभ
हुई थी ! यह 44 राष्ट्रों का सम्मलेन था ! जिसकी स्वीकृति
4 NOV 1945 को हुई ! इसी दिन इसकी स्थापना की विधिवत
घोषणा भी की गई! शुरुआत में इसके मात्र 20 राष्ट्र सदस्य
थें ! जो वर्तमान में 144 से अधिक हैं! इसकी स्थापना के
प्रणेता इंग्लैंड के तत्कालीन प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली और अमेरिका के कार्व
आर्चिवाल्ड मैक्लिस थें !उनेस्को की स्थापना का मूल उद्देश्य सुचना के प्रसार एवं
शिक्षा कार्यक्रमों से मानव ह्रदय को परिवर्तित करना है जिससे मानव ह्रदय से
युधात्मक प्रवृति का उन्मूलन करना था! सूचनाओं का असंतुलित प्रवाह और यूनेस्को की
भूमिका ;(2.) आई.टी.यू – इसकी
स्थापना सन 1865 में अंतर्राष्ट्रीय तार संघ ( इंटरनेशनल
टेलीकम्यूनिकेशन यूनियन) के रूप में पेरिस नगर में की गई! इसका मुख्य उद्देश्य तार
द्वारा समाचार भेजने की प्रक्रिया को विकसित करना व इसको अन्य समाचार प्रसारित
करने वाले साधनों से संबद्ध करना था! मुख्य रूप से आकाशवाणी द्वारा समाचार प्रेषित
करने की प्रक्रिया से सन 1932 में इसका नाम बदलकर
अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) रखा गया! इसका
मुख्यालय वर्तमान में जेनेवा में है! विश्व के सभी राष्ट्र वर्तमान में इसके सदस्य
हैं! अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ का संचार संप्रेषण के क्षेत्र में विकास करने का
अहम् दायित्व है!
मीडिया ट्रायल में शोध का महत्व
मीडिया एक ऐसा नाम जो किसी पहचान का मोहताज नही होता, इसकी
ताकत को मापकर किसी ने इसे चौथे खम्भे की उपाधि से नवाजा तो वही किसी ने तमगा दिया
समाज के आईने का ! एक ऐसा आईना जिसमे देखते ही देखते वक्त के बदलते हालात के साथ
मीडिया के सारे सरोकार बदल कर रख दिए ! भूमंडलीकरण के अंधे दौर में मीडिया भी बाजार
के साथ दो – दो हाथ करता नजर आया साम-
दंड, भेद -भाव, पैसा, यह सब मीडिया के लिए
अनैतिक होने के वजाय हालात का प्रतिक चिन्ह बन गए! जिसे समाज ने भी कबूलने में कोई
हाजो -हिचल नही की! इस बदलते परिवेश की देंन रही की वक्त के बदलते पगडण्डीयों पर
चलते – चलते मीडिया ने खबरों को
वही पुराने मिजाज से दिखने के वजाय इस चटकारे मसाले में भुजना ही बेहतर जाना !
वर्तमान में तेजी से उभरती मीडिया ट्रायल की संकल्पना बहुत हद तक इसी की दें हैं!
मीडिया ट्रायल को टीवी कवरेज मिलने के पीछे इसी बाजारवाद की दें रही ! संवेदनशील
खबरों को ब्रकिंग व एक्सक्लूसिव के बैच में गढ़कर दर्शको के कमरे तक पहुचाया गया !
रहस्यमय हत्या की वारदाते, हाई प्रोफाइल, दम्पत्तियों की खबरे ,अभिनेता, राजनेता, इस मीडिया ट्रायल के प्यादे बने, जिसे मीडिया जब चाहे जिधर
चाहे दौड़ा सकती थी ठीक वैसे ही जिस तरह किसी सतरंग की बाजी में प्यादे भागे फिरते
हैं !
वख्त – वाब्ख्त मीडिया
ट्रायल को एक गुनहगार की तरह सवालो के कटघरे में खड़ा किया गया हैं ! कुछ हद तक
इसकी दोषी खुद मीडिया हैं मगर ज्यादातर मामलों में राजनेता और व्यक्ति विशेष अपनी
लुटती साख बचाने के लिए मीडिया ट्रायल को हमेशा – हमेशा के
लिए बंद करने को लेकर कई मर्तवा आदालत / कानून का दरवाजा बेवजह ही खटखटा चुके हैं!
2005 का प्रकरण ऐसे में याद होगा, जब 26
दिसम्बर 2005 को संसद में मीडिया ट्रायल को
बंद करने की मांग को लेकर पुरे दिन बहस चली “राजदीप सर देशाई”
ने संसद में वक्तव्य दिया की “ कैमरा कभी झूठ
नही बोलता “ ! ज्यादातर मामलों में मीडिया को यह आभाष हो
जाता हैं की बिना आवाज़ उठाये इन खबरों पर सरकार कोई करवाई नही करेगी , वैसे ही मामले मीडिया ट्रायल के अंश बनते हैं ! जिसके बाद देश के कोने –
कोने से मीडिया ट्रायल को लेकर मीडिया को मिलते विशाल जनसमर्थन ने
मीडिया ट्रायल के इस बिरोधी वर्ग के मंसूबो पर पानी फेर दिया ! आज मीडिया सवतंत्र
हैं ठीक पहले की तरह किसी प्रकरण विशेष की मीडिया ट्रायल करने पर ! इस मद्देनजर
नजर मीडिया ट्रायल में शोध का महत्व को व्याख्यायित किया जा रहा हैं ! प्रकरण के
इकाईयों पर दोषारोपण:- मीडिया ट्रायल के जरिये मीडिया न्यायालय के बिचाराधीन किसी
प्रकरण के होते हुए भी नयायपालिका के फैसले से पूर्व ही अपना फैसला अपने
कार्यक्रमों, बहस और खबरों जरिये तय कर देती है ! जिससे
इकाईयों की मर्यादा धूमिल होती है ! सामाजिक प्रतिष्ठा गिरती है! मीडिया एक लम्बे
समय से ऐसा करती रही है! मीडिया शोध इसके पीछे की हकीकत जानने की कोशिश करता है !
मीडिया ट्रायल की प्रासंगिकता:- मीडिया में जिन खबरों पर ट्रायल चलाया जा रहा है !
उनकी अनिवार्यता , प्रासंगिकता कितनी है, किस प्रकार के खबरों को मीडिया ज्यादा वरीयता दे रही है ! इन खबरों को साल
में, माह में, सप्ताह में कितने घंटे
कबरेज दिया जा रहा है ! कितनी बार ऐसी खबरे मीडिया की हैडलाइन बनी है ! इस दौरान
मीडिया को मिलने वाले विज्ञापन की संख्या क्या है! मीडिया में मीडिया ट्रायल का
इकाई बने इन खबरों को क्या इतना तबज्जो देना सही है ! शोध इन कारको व कारणों को
जानने की कोशिश करता है ! मीडिया ट्रायल का स्वरूप:- मीडिया ट्रायल में जिन खबरों
पर मीडिया ट्रायल चलाया जा रहा है ! या चलाया गया है ! इस पहलू की जाँच शोध के
माध्यम से की जाती है ! मीडिया में जिन खबरों पर मीडिया ट्रायल चला है उनका स्वरूप
कैसा है ! क्या उनमे सनसनी मचने जैसी घटनाये जैसे;- हत्याकांड,
प्रधानमंत्री पर लगे घोटाले का आरोप या किसी मंत्री या अनैतिक खबरों
को ही उठाया गया है ! यह मीडिया ट्रायल शोध के जरिये ही पता लगाया जाता है ! किन
खबरों पर मीडिया ट्रायल की जरूरत:- मीडिया ट्रायल के मापदंड पर जिन खबरों को रखा
गया है क्या वे इन मापदंडो पर खरे उतारते है ! कृषि, शहर की
समस्या, नक्सलवाद, आतंकवाद, शिक्षा, नारी सशक्तिकरण ,बिजली,
भ्रष्टाचार, विकास जैसे मुददों को क्या मीडिया
ट्रायल में शामिल किया गया या इन्हें मीडिया ने हासिये पर रखा है ! क्या जिन खबरों
में मीडिया ज्यादा मसाला लगा सकती है सिर्फ उन प्रकरणों को मीडिया ट्रायल के रूप
में प्रस्तुति दी गयी ! मीडिया शोध इकाईयों का अन्वेषण करती है ! समस्याओ का
निदान:- मीडिया ट्रायल के समस्याओ के निदान में शोध बेहद महत्वपूर्ण रोल अदा कर
रहा है ! बर्तमान परिदृश्य में मीडिया ट्रायल को बेबुनियाद बताकर समाज के एक विशेष
तबके ने मीडिया ट्रायल पर रोक लगाने की मांग न्यायालय में उठाई! यह मामला सन 2005
में संसद में भी पुरे दिन गूंजा मगर मीडिया के साथ इस समय भारत का
विशाल जनसमर्थन खरा था जिसका परिणाम रहा की आज तक मीडिया ट्रायल बिना किसी रोक टोक
के जरूरत भरी खबरों पर चलाया जा रहा है ! केस स्टडी:- मीडिया जिन खबरों पर मीडिया
ट्रायल चला रही है या अब तक जिन खबरों को मीडिया ट्रायल के जरिये चलाया जा रहा है
! मीडिया ट्रायल के अंतर्गत शोध यह जाँच करती है! मीडिया में किन खबरों पर मीडिया
ट्रायल चलाना अनिवार्य है ! किन खबरों को टी आर पि की होड़ में मीडिया ट्रायल का
रूप दिया गया! क्या न्यूज़ चैनल या समाचार पत्रिका एक दुसरे से आगे निकलने की होड़
में किसी खबर का मीडिया ट्रायल बेबुनियादी तौर पर कर रहे है ! मीडिया ट्रायल में
किये जाने वाले शोध के अंतर्गत इन बिन्दुओ का ही तलाश करते है ! अन्वेषण:- मीडिया
में किस तरह के खबरों पर ज्यदाकर मीडिया ट्रायल अब तक चले है ! क्या इनका सामाजिक
सरोकार से कोई वास्ता है ! यदि है तो किस हद तक है ! किस भौगलिक क्षेत्र किस प्रकार
की खबरों पर मीडिया ट्रेल ज्यादा चलाये जा रहे है या गए है ! क्या मीडिया ट्रायल
सिर्फ व्यक्ति विशेष , सनसनीखेज खबरों , व्यक्ति विशेष के पर्सनल अफेयर्स पर चलाये जा रहे है! सामाजिक सरोकार ,
आम जन की आबाज की खबरों को भी मीडिया ट्रायल के जरिये सरकार या शासन
तक पहुचाया गया है ! न्यायपालिका पर दबाव :- मीडिया ट्रेल को लेकर अक्सर ये विवाद
आम रही की मीडिया ट्रायल ने न्यायपालिका में लंबित मामलो पर दवाव बनाने का कार्य
किया है ! शोध के जरिये इस अवधारणा की जाँच की जाती है ! इसकी सत्यता की माप की
जाती है ! शासन, प्रशासन के कार्यकरण में रुकावट :- मीडिया
ट्रायल के ज्यादातर मामलो को लेकर शासन प्रशासन की यह आरोप रहा है की मीडिया
ट्रायल शासन और प्रशासन पर प्रेसर ग्रुप का निर्माण करती है ! मीडिया ट्रायल शोध
में इन तमाम इकाईयों की जाँच पडताल बारीकी से किया जाता है ! मनी मेकिंग गन:-
मीडिया पर अक्सर ही एक लम्बे समय से ही मीडिया ट्रेल के मामलो को लेकर मनी मेकिंग
गन होने का आरोप लगाया जाता रहा है ! इस आरोप की जाँच शोध के जरिये ही की जा सकती
है ! इनमें कितनी सत्यता है ! ऐसे कई सारे इकाईयों की जाँच मीडिया ट्रायल पर किये
जा रहे शोध के जरिये लगे जा सकता है ! शब्दों या वाक्यों का प्रयोग:- मीडिया जिस
प्रकरण पर मीडिया ट्रायल चला रही है ! उन में किस तरह के शब्दों, वाक्यों ,विशेषणों का प्रयोग किया जा रहा है ! क्या
ऐसे मामलो को मीडिया गंभीरता से ले रही है! क्या ऐसे मामलो के प्रयोग में प्रेस
कोंसिल या बी० बी० सी० के रिपोर्टिंग शब्दावलियो या संहिताओ का ध्यान रख रही है !
यदि रख रही है तो किस हद तक !क्या मिथ्या, लंछावान, अमर्यादित, या धूमिल करने वाले ग्राफ़िक्स संकेतो के
द्वारा प्रकरण की इकाईयों को प्रभावित किया जा रहा है ! मीडिया शोध इन तमाम बिन्दुओ
की करी दर करी परताल करती है ! टी आर पी का हथकंडा:- मीडिया ट्रायल पर किये जाने
वाले शोध में यह भी अन्वेषित करने की कोशिश की जाती है किन की क्या मीडिया ट्रायल
के बढ़ते मामलो के पीछे मीडिया को अन्य खबरों से अधिक मीडिया ट्रायल को मिलती
लोकप्रियता है ! क्या टी आर पि की बजह से मीडिया ट्रायल को मीडिया संसथान इतना तूल
दे रहे है ! इन इकाईयों की जांच शोध की मदद से की जाती है ! लोकप्रियता जुटाने का
हथियार:- मीडिया ट्रायललोकप्रियता जुटाने का एक हथियार है जैसा की समाज का एक
सुक्ष्म वर्ग ये आरोप लगता रहा है मगर यह बात कितनी बुनियादी है ! मीडिया ट्रायल
पर किये जाने वाला शोध इस इकाई की पडताल करता है !
टेलीविजन कार्यकमो का बदलता स्वरूप और जनमानस पर प्रभाव
भूमिका
टेलीविजन अपने शुरुआत से ही आकर्षण का केंद्र बना रहेगा ! समाचार पत्र और रेडियो
को पीछे छोड़ते हुए टेलीविजन ने सूचना, शिक्षा व मनोरंजन के
क्षेत्र में जो सोहरत हासिल किया हैं. इतने कम समय में किसी भी संचार माध्यम के
लिए ये संभव नही था ! टेलीविजन कार्यकर्मो ने जनमानस के विजन को जो बहुरंगी आयाम
दिया हैं, वह मनोरंजन, सूचना व शिक्षा जगत के लिए किसी करिश्मे से कम नही हैं ! टेलीविजन के
विजन ने जनमानस के अन्दर नए सोच का सृजन किया हैं ! यह सृजन टेलीविजन कार्यक्रमो
का परिवर्तित व परिवर्धित रूप हैं ! टेलीविजन वह दृश्य – श्रव्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यम जिसके जरिये शुचना शिक्षा तथा मनोरंजन
संबंधीत कार्यक्रम का प्रसारण व्यापक मिश्रित जनसमूह तक संभव बनाया जाता हैं !
टेलीविजन शब्द की उत्पति टेली व विजन दो शब्दों से मिलकर हुई हैं ! टेली – दूर, विजन – देखना अर्थात् दूर की
चीजो को पास से देखने का माध्यम ही टेलीविजन हैं ! टेलीविजन कार्यकमो की शुरुआत
आजादी से पूर्व हमारे देश में टेलीविजन एक सपने जैसा था ! 15 सितम्बर 1959 को ये सपना सच हुआ !
राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने दिल्ली में दूरदर्शन सेवा का विधिवत् उद्घाटन
किया ! दूरदर्शन के प्रारंभिक कार्यक्रम एक घंटे के होते थे जो सप्ताह में दो बार
मंगल बार व शुक्रवार को प्रसारित किये जाते थे ! जहा समाजिक, शिक्षा व कृषि जैसे
कार्यक्रम प्रसारित किये जाते थे, टेलीविजन कार्यक्रम प्रसारण के क्षेत्र में दूरदर्शन ने एक कदम और
बढाया ! रंगोली तथा चित्रहार जैसे कार्यक्रमो ने टेलीविजन को और विस्तार दिया ! 15 अगस्त 1982 को दूरदर्शन पर 90 मिनट का रास्ट्रीय कार्यक्रम प्रारंभ किया गया ! यह कार्यक्रम कालान्तर
में रात्रि 8:30 बजे से देर रात तक
प्रसारित होता रहा, जिसमें समाचारों व धारावाहिकों के अतिरिक्त सामयिक विषयों से जुड़े
कार्यक्रम, संगीत के विविध कार्यकर्म, वृतचित्र, कवि सम्मलेन, मुशायरा आदि कार्यक्रम प्रमुख थे ! 7 जुलाई 1984 का दिन दूरदर्शन के
इतिहास में विशेष महत्व रखता हैं ! इस दिन दूरदर्शन के पहले धारावाहिक ‘हम लोग’ का प्रसारण प्रारंभ
हुआ ! 15 अगस्त, 1984 को यू. जी. सी. के
सहयोग से विश्वविद्यालय के छात्रो के लिए एक घंटे का शैक्षणिक प्रसारण किया गया !
टेलीविजन ने जनता में अपार लोकप्रियता अर्जित कर ली ! सप्ताह में दो बार चित्रहार, रविवार की फिल्म, हम लोग, खानदान, ये जो हैं ज़िन्दगी, बुनियाद, रजनी, भारत एक खोज, विक्रम और बेताल, मुंगेरीलाल के हसीं
सपने, रामायण, महाभारत आदि
धारावाहिकों ने टेलीविजन को मध्यम वर्ग की जरूरत बना दिया ! वही 1992 में केवल प्रसारण की शुरुआत के साथ ही CNN, ZEE, STAR, BBC, SAHARA, SONY,
DISCOVERY, DD1, के
रास्ट्रीय और अंतररास्ट्रीय व कुछ – कुछ क्षेतीय चैनलों
समेत लगभग 70 – 80 चैनलों ने समाचर, आर्थिक, खेल, धारावाहिक, सिनेमा, धार्मिक, विज्ञान, संगीत, कार्टून चैनलों की एक
नै दुनिया में हमें ला खड़ा किया ! वही डीजीटल ट्रांसमीटर के प्रक्षेपन ने DDH सेवा प्रदान किया ! यह DDH प्रसारण सेवा की देंन
हैं की हम 200 से भी अधिक चनैल एक
छोटे से सेटअप बॉक्स के जरिये टेलीविजन पर देख पाते हैं ! साथ ही इंटरैक्टिव टी.वी
व इंटरैक्टिव टी.वी कार्यक्रमो का एक अवसर प्रदान किया हैं ! जहा अपने मन पसंद के
कार्यक्रमो को रिकॉर्ड कर फ्री समय में देखने की सुबिधा दी जा रही हैं ! टेलीविजन
के विभिन्न कार्यक्रमो में बदलाव : एक नजर प्रारंभ में दूरदर्शन पर 5 मिनट और 10 मिनट के समाचार
बुलेटिन दिखाए जाते थे, जहाँ खबरों को साहित्यिक भाषा में प्रस्तुत किया जाता था ! तथ्यों में
छेड़ – छाड़ किये बिना खबरों
को सीधे – साधे शब्दों में
प्रस्तुत किया जाता था ! रास्ट्रीय प्रसारण शुरु होने से पहले तक क्षेत्रीय
कन्द्रो से प्रसारित होने वाले समाचारों में छायांकित अंश कम होते थे, और टेलीविजन बुलेटिन, रेडियो की खबरों जैसा
ही रहता था ! खबरों के नाम पर वह वही परोसता था जो सरकारी ताने – वाने की निर्धारित परिपाटी के अनुरूप था ! टेलीविजन समाचार कार्यक्रमों
में हिंसा, दंगे व अपराध जगत की खबरे नही दिखाई जाती थी ! यदि दिखया भी जाता था तो
उसे बिना चलचित्र व सीधे – साधे शब्दों के साथ
प्रस्तुत किया जाता था ! बदलते परिदृश्य के साथ कार्यक्रम प्रस्तुति की सीमा भी
बढ़ी ! अब समाचार बुलेटिन की प्रस्तुति की समय सीमा 30 मिनट व 1 घंटे के समाचारो में
बदल चुकी थी ! अब हम समाचारो को देखने के लिए केवल दूरदर्शन और DD न्यूज पर निर्भर नही थे ! 21 वे सदी के शुरूआती
वर्षो में समाचार मीडिया के परिदृश्य पर इस बदलाव का असर दिखने लगा, NDTV,
AAJ TAK, STAR NEWS, SAHARA, ZEE NEWS जैसे 24 घंटे के चनैल बाजार
में उतर आए, इन चैनलों के लिए सबसे बड़ी चुनौती दर्शको को अपने चैनल से बंधे रखना था
! ऐसे में दर्शको का मन टटोलने का मुहीम सुरु हुई, बहुत जल्द ही ये समझ
में आये की दर्शको को अगर फ़िल्मी मसलो जैसी खबरे परोसी जाये तो दर्शोको को चैनल से
बांधे रखन काफी आसन हैं ! वही वीडियो के साथ साहित्यिक भाषा के साथ सामजस्य बैठाना
भी काफी कठिन हुआ करता था ! जिसका निदान समाचार चैनलों को फ़िल्मी तारक भरक भाषाओं, सरल व प्रचलीत हिंदी
भाषाओ में दिखा ! अपराध जगत की खबरों के ऊपर लोगो का अधिक जुड़ाव देखकर मीडिया
चैनलों ने अपराध जगत को भी अब अपने बुलेटिन में लगाने की प्रथा शुरू किया ! बदलते
जनमानस के मिजाज के साथ टी.वी. चैनलों ने अब तारक – भरक वाली खबरों, अपराध जगत की खबरों, सनसनी फैलानो वाली खबरों, खेल जगत, फिल्म जगत, मनोरंजन जगत, और आज तो धारावाहिक, व हास्य कार्यक्रमो के कुछ एपिसोडो में संपादन व मिर्च मसाला लगाकर
परोसना सुरु कर दिया हैं, जैसे आज तक पे आने वाली “सास बहु और बेटीया”, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं ! आज तो राशी फल, वास्तुशात्र, धार्मिक यात्राओ के
कार्यक्रम भी दिखाए जा रहे हैं ! वही राजनीत का सबसे अधिक हस्तक्षेप न्यूज चैनलों
में हुआ हैं ! आज हरेक खबरों को सनसनी व एक्सक्लूसिव कर के दिखाया जा रहा हैं !
परिचर्चा कार्यक्रम परिचर्चा कार्यक्रम आकशवाणी और दूरदर्शन की देंन हैं ! आज सभी
न्यूज़ चैनलस समसामयिक घटनाओ, राजनितिक घटनाओ, पर परिचर्चा का आयोजन कर रहे हैं ! आज परिचर्चा का स्वरूप समसामयिक
विशेष, विषय
पर व अपवादित व्यानो पर हंगामे के साथ खत्म होता हैं ! जहां परिचर्चा में सामिल
राजनीतिक या आमंत्रित अतिथि, अमर्यादित शब्दों का प्रयोग कर रहे है ! जिसे न्यूज चैनलों ने बढती TRP की नजर से देखन शुरू कर दिया हैं ! वही इसे परे आज संगीत, फिल्म चैनलों व न्यूज
चैनलों ने भी संगीत लौन्चिंग और के फिल्म लौन्चिंग पर स्टूडियो में परिचर्चाओ का
आयोजन फिल्म के निर्माता, निर्देशक, अभिनेता, अभिनेत्री के साथ कर रहा हैं, जो TRP व फिल्म प्रमोशन का एक बड़ा प्रचलन बन कर उभरा कर हैं ! वही लाइव खेल
कार्यक्रमों के दौरान भी लाइव परिचर्चाये खेल विशेषज्ञ व पूर्व खिलाडियों के साथ
किया जा रहा हैं ! वार्ता कार्यक्रम वार्ता कार्यक्रम भी दूरदर्शन और आकाशवाणी की
ही उपज हैं ! आज प्राय सभी न्यूज़ चैनल किसी विशेष अवसर पर वार्ता का आयोजन कर रहे
हैं, आज
राजनितिक जगत के लोग ऐसे वार्ताओ में जयादा दिख रहे हैं ! वही खेल चैनलों, फिल्म चैनलों व आज तो
विज्ञापनों को भी वार्ता के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा हैं ! जैसे मोबाइल फ़ोन, कपड़ो, आयुर्वेदो, सौन्दर्य वस्तुओ आदि
पर वार्ताए प्रस्तुत किये जा रहे हैं ! यह वार्ता का बदलता सवरूप ही हैं !
साक्षत्कार साक्षत्कार टेलीविजन समाचार माध्यमो में आज बहुत प्रमुखता से दिखया जा
रहा हैं ! बड़े राजनीतिज्ञ, बड़े अभिनेता, प्रतिष्ठित व्यक्तियों से सम्बंधित साम्समयिक विषयों पर या इनके जीवन
के उपलब्धियों से जुड़े, छिपे हुए पहलुओ को साक्षत्कार के जरिये दर्शको तक पहुचाया जाता हैं !
साक्षत्कार स्वयं एक खबर भी हैं, जिसके जरिये अपवादित समसय्मिक विषयों के छुपे हुए तथ्यों को साक्षत्कार
के समय प्रश्नों के जरिये ही उद्घाटित किया जाता हैं ! लेकिन आज साक्षत्कार का
स्वरूप बदलता नजर आ रहा हैं ! साक्षातकर्ता आज स्टूडियो में आये महमानों पर हावी
होता जा रहा हैं ! कटु प्रश्नों के जरिये इसे साक्षत्कार करता ही नही वल्कि
टेलीविजन समाचार चैनलों की मर्यादा धूमिल होती जा रही हैं, यह सब मामूली TRP के लिए किया जा रहा हैं ! आज नाटकीयता से साक्षत्कार को दर्शको तक
प्रस्तुत किया जा रहा हैं ! इंडिया टी.वी. पर आने वाले साक्षत्कार कार्यक्रम “आपकी अदालत” को उदाहरण स्वरूप ले
सकते हैं ! संगीत कार्यक्रम संगीत कार्यक्रमों की शुरुआत दूरदर्शन पर आने वाले
चित्रहार और रंगोली कार्यक्रमों से देखते हैं ! उन दिनों यह बहुत ही लिकप्रिय हुआ
करता था, पुराने
सदाबहार गीतों के साथ महिला उद्घोषिका शब्दों के जरिये कार्यक्रमों की उद्घोषणा व
दर्शको के भेजे पत्रों को सुनती थी, व आज भी एक इतिहास हैं ! आज संगीत कार्यक्मों के प्रसारण का स्वरूप
बदला नजर आता हैं ! आज पत्रों के वजाय मोबाइल मेसेज व इन्टरनेट के जरिये भी सोंगस
सुनाने का डिमांड किया जा रहा हैं ! आज तो फेसबुक का भी प्रचलन काफी देकने के मिला
रहा हैं फ्फसबूक के माध्यम से सोंग्स की मांग व अपने दोस्तों तक पंहुचा कर किया जा
रहा हैं जिसे संगीत चैनल के स्क्रोल पर फ़्लैश किया जा जाता हैं !उदाहरण सवरूप ये
प्रमुख चैनल हैं – 9XM, ETC
MUSIC, SONY MUSIC, ZEE ETC, V MUSIC, इत्यादि हैं ! वही सदाबहार संगीतो के वजय आज आइटम सोंग्स, न्यू रिलीज सोंग्स, की डिमांड के अनुरूप
संगीत प्रस्तुत किया जा रहा हैं ! फिल्म कार्यक्रम फ़िल्मी कार्यक्रमों की शुरुआत
भी दूरदर्शन की ही देंन हैं, फ़िल्मी कार्यक्रम तो आज भी दूरदर्शन पर रात 9बजे शुक्रवार व
शनिवार को दिखाया जाता हैं , वही रविबार को इसका
प्रसारण 12 बजे से आता हैं !
फ़िल्मी कार्यक्रमों के प्रति बढती मांगो को देखकर दर्जनों हिंदी चैनल दर्शको के
बिच उतर आये ! जो 24 घंटे सिर्फ पुराने ही
नही वल्कि न्यू रिलीज फिल्मे भी प्रस्तुत की जा रही हैं ! अब देश की ही नहीं वल्कि
विदेशी भाषाओं की फिल्मो की बढती मांगो को देखकर हिंदी डबिंग कर के प्रस्तुत किया
जा रहा हैं ! आज हिंदी ही नही अंग्रेज़ी के कई चैनल आ चुके न जो अंग्रेज़ी में
प्रोग्राम प्रस्तुत करते हैं, यह भारतीय मूल के लोगो को अंग्रेज़ी सिखने के भी कम आया हैं ! आज तो
दर्शको की मांग पर न्यू रिलीज फिल्मे भी देखना भी संभव हो पाया हैं ! खेल
कार्यकर्म वर्तमान समय में हम खेल कार्यक्रमों के लिए हमें दूरदर्शन पर आश्रित नही
हैं ! दर्जनों 24घंटे के खेल चैनलों के आने से आज हम केवल लाइव प्रसारित होने वाली खेल
कार्यक्रमों को ही नही देख सकते वल्कि उसे रिकॉर्ड कर के भी देखा जा सकता हैं इसके
अलावे हम हाईलाइट भी देख सकते हैं ! वही दुनिया के हर खेल को घर के छोटे टेलीविजन
पर देखना संभव हो गया हैं ! जिसे अपनी पसंद की भाषा में देख सकते हैं ! वही
कार्यक्रम के दौरान इन चनलो से पूछा जाने वाले प्रश्नो के सही जबाब पर दर्शको को
इनाम भी दिए जा रहे हैं ये खेल कार्यकर्मो की ही दिन हैं ! हास्य कार्यक्रम पहले
आधे घंटे के हास्य कार्यक्रमों के जरिये दर्शको के घरो में हास्य से भरपूर
मनोरंजनात्मक कार्यक्रम प्रस्तुत कर दर्शको को गुदगुदाया जाता था ! पूर्व में
दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाला कार्यक्रम हम पांच, वर्तमान में कलर्स पर
आने वाला “कॉमेडी नाईट विथ कपिल” इसके उदाहरण हैं ! व सब टी.वी. पे आने वाला हास्य कार्यक्रम “तर्क मेहता का उल्टा
चश्मा, FIR हास्य कार्यक्रम इसके उदाहरण हैं, आज तो 24 घंटे प्रसारित होने वाले चैंनल भी आ चूके हैं ! जिसमे सब टी.वी. का नाम
अग्रणी हैं ! इस तरह हास्य कार्यकर्मो में एक बहुत बड़ी बदलाव देखने को मिला हैं !
धारावाहिक कार्यक्रम धारावाहिक कार्यक्रमों का शुरुआत दूरदर्शन पर प्रसारित होने
वाले कार्यक्रम “हम लोग” से देखते हैं ! जहां इस कार्यक्रम के जरिये समाज के दर्पण को सीधे – शब्दों में नाटकीयता के जरिये प्रस्तुत किया जाता था ! जैसे- हम पांच, बिक्रम बैत्तल, शक्तिमान जैसे
धारावाहिक कार्यक्रमों ने मनोरंजन जगत में एक इतिहास कायम किया ! धारावाहिक की ओंर
दर्शको के बढते झुकाव को देखते हुए मनोरंजन जगत के 24घंटे प्रसारित होने
वाले चैनल आज हमारे बिच एक मिसाल बन कर उभरे हैं ! आज कार्यक्रमों का स्वरूप भी बदला
हैं ! आज कार्यक्रमों के जरिये ही वेस्टन कल्चर और वेस्टन फैसन को प्रस्तुत किया
जा रहा हैं ! बदलते टेलीविजन कार्यक्रमों का जनमानस पर प्रभाव जनमानस के बदलते
मिजाज के साथ कार्यक्रमों में व्यापक वदलाव देखने को मिली ! अधिक से अधिक जनता को
आकर्षित करने व अधिक से अधिक धन कमाने की लालसा में प्रसारक टेलीविजन कार्यक्रमों
के जरिये अश्लीलता परोसने से भी नही चुक रहे हैं ! वेस्टर्न कल्चर और वेस्टर्न
फैशन ने आज भारत के सभ्यता को भी विलुप्त होने के कगार पर ला खड़ा किया हैं ! वही
धारावाहिक कार्यक्रम में तलाक़, दोहरी शादी, सास बहु के झगडे आज घर – घर के झगडे बन गए हैं, ये सामाजिक अस्थिरता
धरावाहिक कार्यक्रमों के बदलते स्वरूप के कारण ही देखने को मिल रहा हैं ! वही
समाचार परिपेक्ष्य में राजनीत, पैड न्यूज़, बनावटी समाचार कार्यक्रम, पैड कार्यक्रम, हरेक खबरों को सनसनीखेज बनाना, सनसनीखेज ब्रकिंग
न्यूज़, व
झूठे स्टिंग, समाचार चैनलों के लिए सस्ती TRP के मुख्य हथियार बन
चुके हैं यह टेलीविजन कार्यक्रमों के बदलते स्वरूप की ही देंन हैं !
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